Book Title: Pratishtha Saroddhar
Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ प्र०सा० ॥१३२॥ आचारं शिरसि सूत्रकृत् वक्रासु के ठेका । स्थानेन समवायागव्याख्याप्रज्ञप्तिदोलताम्।। २७ वाग्देवतां ज्ञातृकथोपासकाध्ययनस्तनी । अंतकृद्दशसन्नः भिन्नुत्तरदृशां गतः ॥ २८ ॥ सुनितंबा सुजघना प्रष्णव्याकरणश्रुतात् । विपाकसूत्रग्वादचरणांवरां ? ॥ २९ ॥ सम्यक्त्वतिलकां पूर्वचतुर्दश विभूषणाम् । तावत्यकीर्णको दीर्णचारुपत्रांकुरश्रियम् ॥ ३० ॥ आप्तदृढप्रवाह वद्रव्यभावाधिदेवताम् । परब्रह्म प्रथादृशां स्वादुक्ति भुक्तिमुक्तिदाम् ||३१|| | | सर्वदर्शन पाखंडदेवदैत्यं खगार्चिता । जगन्मातरमुद्धर्तुं जगदत्रावतारयेत् ॥ ३२ ॥ विति सरस्वति ह्रीं नमः " इस सरस्वतीमंत्रको चारों तरफ वेढें । उसके बाहर पूर्व आदि दिशाके क्रमसे चार पत्तोंपर " ओं वाग्वादिन्यै नमः " इत्यादि चारोंको लिखे । उसके बाहर आठों पत्तोंपर " ओं नंदायै नमः " इत्यादि आठ देवियोंको लिखे । उसके बाहर सोलह पत्तोंपर " ओं रोहिण्यै नमः " इत्यादि सोलह विद्यादेवियों को लिखे । उसके बाद पूर्व आदि आठ दिशाओं में " इंद्राय स्वाहा ” इत्यादि मंत्रोंसे आठ दिक्पालों को स्थापन करे । पूर्व और ईशान्य दिशाओंके वीचमें " ओं अधो नागेभ्यः स्वाहा | लिखकर नागकुमारकी स्थापना करे । पश्चिम दिशा के दिक्पालके ऊपर " ओं ऊर्ध्वब्रह्मणे | नमः " ऐसा लिखकर परमब्रह्मकी स्थापना करे। इंद्रक नीचे ओं ह्रीं मयूरवाहिन्यै नमः लिखकर सरस्वती देवीकी स्थापना करे । उसके बाद तीनवार ईकारसे तथा क्रों | से बेढकर बाहर पृथ्वीमंडल लिखे ॥ फिर " ओं हीं " इत्यादि मंत्रसे कलशोंको मंत्रितकर "" (6 " भा०टी० अ० ६ | ॥१३२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298