Book Title: Pratishtha Saroddhar
Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay
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____ओं अर्हन्मुखकमलवासिनि पापानि क्षयं कर श्रुतज्वालासहस्रप्रज्वलिते सरस्वति मम पापं । शहन २ क्षां क्षी तं सौं क्षः क्षीरवरधवले अमृतसंभवे वं वं हुं स्वाहा । एतत्पठन् प्रतिमायां अंग-2
प्रत्यंगपरामर्श कुर्यात् । गुणारोपणं । ओं ह्रीं श्रीं अत्र एहि २ संवौषट् , ओं ह्रीं तिष्ट २ ठ ठ, ओं ह्रीं सन्निहितो भव वषट् । आवाहनादिमंत्रः । ततो मूलमंत्रेण तिलकं दत्वा पूर्ववदधिवासनाविधीन् । विदध्यात्। |शुभे शिलादावुत्कीर्य श्रुतस्कंधमपि न्यसेत् । ब्राह्मीन्यासविधानेन श्रुतस्कंधमिह स्तुयात् ३३ || सुलेखकेन संलिख्य परमागमपुस्तकम् । ब्राह्मी वा श्रुतपंचम्यां सुलग्ने वा प्रतिष्ठयेत् ३४ आकरशुद्धि करे। उसके बाद “बोधेन ” इत्यादि श्रुतदेवीका स्तवन पढकर प्रतिमाह ऊपर पुष्पांजलि क्षेपण करे । उसके बाद “ बारह " इत्यादि सात श्लोक तथा “ओं अर्ह " ? इत्यादि मंत्र बोलकर सरस्वतीप्रतिमाके अंगोंका स्पर्श करें ॥ २६ ते ३२ तक ॥ फिर
गुणोंका स्थापन करे । उसके वाद “ओं" इत्यादि मंत्र बोलकर आवाहन आदि करे । & उसके बाद मूलमंत्रसे तिलक देकर पूर्वरीतिके अनुसार अधिवासना आदि क्रियाओंको करे । उत्तम शिला आदिमें सरस्वतीकी मूर्ति खुदवाकर स्थापना करके स्तुति करे ॥३३॥ अथवा परमागमके शास्त्रोंको अच्छे विद्वान् लेखकसे लिखवाकर श्रुतपंचमीके दिन शुभ|||| लग्नमें सरस्वतीप्रतिष्ठा करे ॥ ३४॥

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