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प्र०सा०
भान्धी
मंत्रमुच्चार्य तं दर्पणप्रतिबिंबितयक्ष तज्जलैरभिषिच्य गंधादिभिश्चार्चयित्वा मुखवस्त्रं दत्वा नयनोन्मीलनं सुमुहर्ते कुर्यात् । इति ध्वजदेवताप्रतिष्ठाविधानम् । एवं कृत्वा ध्वजारोहं पुण्यं प्राप्याद्भुतं कृती। भुक्त्वा तथादिसुभगः श्रेयोनिर्वृतिमश्नुते ॥७८॥
इति ध्वजारोपणविधानम् । प्रासादप्रतिमे अनेन विधिना ये कारयित्वाहतां भक्त्यानिहुतशक्तयो विदधते नित्याभिषेकादिकान् ।
|वेदीके नीचे पूर्व दिशामें धुजाको रख उसमें चिन्हित यक्ष देवको इसप्रकार प्रतिष्ठित करे। “ओं"ST
इत्यादि षोलकर आवाहन स्थापन सन्निधीकरण करे । उसके वाद सर्वोषधीसे मिलहुए जला-III है|शयके जलसे भरे कलशोंको आगे रख अमृतादि पूर्व कथितमंत्रसे उस जलको मंत्रितकर धुजाके ||
आगे लिखे हुए पत्तेको रख चंदन अक्षत पुष्पोंसे“ओं ह्रीं" इत्यादि मंत्र बोलताहुआ दर्पण|में स्थित यक्षके आकारकी पूजा शुभ मुहूर्तमें करे । यह धुजाकी प्रतिष्ठाविधि कही गई|
॥ इस रीतिसे धुजारोहण करता हुआ बुद्धिमान पुरुष महान पुण्यका उपार्जन करके तथा पुण्यफल भोगके मोक्षसुखको पाता है ॥७८ ॥ यह धुजा चढानेकी विधि पूर्ण हुई ||1|| मोक्षके इच्छुक जो भव्यजीव अर्हत जिनका मंदिर और प्रतिमाको तयार कराके अपनी