Book Title: Pratishtha Saroddhar
Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 256
________________ | इत्य ईत्प्रतिमान्यासविधिव्यासेन वर्णितः । तादृक् सामग्रयभावे सौ मध्यवर्त्यपि कल्पितः ४३ तद्यथा । कृत्वा पुराकर्म कृतमंडपादिप्रतिष्ठितिः । मंत्रैरेवार्चयित्वा च मंडलान्यखिलान्यपि ॥ ४४ ॥ प्रतिष्ठेयां निरूप्याच प्रयुक्तसकलक्रियः । संस्कृत्याकरशुद्धयाथ वेदीपीठे निवेशयेत् ||४५ || | कृत्वा कल्याण संस्कारमालामंत्रादिरोहणम् । दत्वा तिलकमंत्राधिवासना संप्रकाशने ॥४६॥ | सन्नेोन्मीलने कृत्वा कृत्वा चाभिषवादिकम् । संक्षेपेणाथ शक्तिश्वेद्युभक्तः स्थापयेत्प्रभुम् ४७ तत्रैकमेव सज्जायाद्यर्चयेद्यागमंडलम् । द्वास्थानंतरमंत्रैव यजेच्च श्रयादिदेवताः ॥ ४८ ॥ वनवाके दे ॥ ४२ ॥ दह क्षमावनीकी विधि समात हुई । इसप्रकार अर्हतकी प्रतिमाकी स्थापना विधि विस्तार से वर्णन की गई है। यदि उतनी सामग्री न हो तो मध्यमरीति से भी स्थापना होसकती है ॥ ४३ ॥ वह इसतरह है । मंडपादि वनवाकर मंडलादिकी रचना कर उन सबको केवल मंत्रोंसे ही पूजकर प्रतिष्ठा होनेवाली जिन प्रतिमाको आकर शुद्धि आदि कही गई विधिसे संस्कारित करके वेदीके सिंहासन पर विराजमान करे ॥ ४४ । ४५ । ४६ ॥ फिर पांच कल्याण संस्कारमालारोपण तिलक अभिषेकादि करे ॥ यह मध्यमरीति है । जिसकी थोड़ी शक्ति हो वह दो बार भोजनकी प्रतिज्ञा कर प्रभुकी स्थापना करे ॥ ४७ ॥ उस वाद एक यागमंडल की पूजा करे फिर द्वारपाल और श्री आदि देवताओंकी पूजा करके | मंडप के बाहर शुद्ध स्थानमें ऊंचे आसनपर मूर्तिको विराजमान करके अभिषेक करे । 3000 acco

Loading...

Page Navigation
1 ... 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298