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प्रसा० चतुर्विधमहासंघ संतप्याहारभेषजैः । योग्योपकरणं दत्वा यष्टा संपूजयेत्स्वयम् ।। ३८ ॥ भाटी० Mil अत्र ये द्रष्टुमायाता प्रतिष्ठान्यापूताश्च ये । तांबूलगंधपुष्पाद्यैस्तान संमान्य विसर्जयेत् ।। ३९ ॥
अ० प्रतिष्ठाचार्यमानम्य तस्यात्मानं समर्प्य च । वस्त्रैराभरणाद्यैश्च संपूज्य क्षमयेत्ततः ॥ ४० ॥ समान्य सूत्रधारादीन् स्वर्णवस्त्रानभूषणैः । गांधवनर्तकादींश्च यथार्ह तत्समर्पयेत् ॥ ४१॥ सार्वकालिकपूजार्थं भूसुवर्णापणादिकम् । वित्तानुसारतो दद्यात्पूजोपकरणानि च ॥ ४२ ॥
इति क्षमापना। M॥३७॥ उसके बाद क्षमा करानेकी विधि करे। वह इस तरह है-प्रतिष्ठा करानेवाला यजमान जिनकल्याणक महोत्सवके वाद आहार औषध दानसे मुनि अर्जिका श्रावक श्राविका-इन चारों संघोंको संतुष्ट करके और उनके योग्य धर्मसाधनके उपकरण ( शास्त्र वगैरः ) देकर ? आप उनकी पूजा करे ॥ ३८ ॥ उसके वाद जो प्रतिष्ठा देखनेकेलिये आये हों अथवा प्रतिमाको प्रतिष्ठा करानके अभिप्रायसे आय हा उन सबका पान सुपारी फूलोको माला आदिसे सत्कार करके जानेको कह ॥ ३९ ॥ उसके वाद प्रतिष्ठाचार्यको नमस्कार कर उसका कुछ भेंट देकर कपड़े और आभूषण आदिसे संमानकर क्षमा करावे ॥४०॥ प्रतिष्ठाके सहायक तथा गंधर्व व नृत्यकरनेवालोंको वस्त्र अन्न आभूषण और कुछ धन योग्यताके अनुसार दे ॥2 ४१॥ उसके वाद जिनप्रतिमाकी हमेशा पूजा होनेके लिये जमीन रुपया या कुछ जायदाद आमदनीके अनुसार किजिसमें मंदिर पूजा हमेशा होती रहे और पूजाके उपकरण (वर्तन आदिक)
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