________________
५० सा०
॥ ९१ ॥
Coe
निःस्वेदत्वमनारतं विमलता संस्थानमाद्यं शुभं तद्वत्संहननं भृशं सुरभिता सौरूप्यमुच्चैः परम् । सौलक्षण्यमनंतवीर्यमुदितिः पथ्याप्रियासृक्य यः शुभ्रं चातिशया दशेह सहजाः सत्वर्हदंगानुगाः || ३५ ॥ सनवव्यंजनशतैरष्टाग्रशतलक्षणैः । विचित्रं जगदानंद यज्जिनांगं तदस्त्विर्द ॥ ३६ ॥ सहजदशातिशयस्थापनार्थं प्रतिमोपरि दशपुष्पीमावयेत् । भृंगाराब्दातपत्रोज्ज्वलचमररुहाण्युद्वहंत्योष्टशो या द्वात्रिंशद्दिकुमार्यो जिनजनुषि भजंत्यंबिकायाश्चतस्रः ।
संस्थान ३ वज्रवृषभनाराच संहनन ४ सुगंधमय शरीर ५ अत्यंत सुंदर शरीर ६ शुभ एक हजार आठ लक्षणवाला शरीर ७ अतुल बल ८ हितमित वचन ९ दूधके समान सफेद लोहू १० ये दश अतिशय जन्मके साथ स्वभावसे ही उत्पन्न होते हैं ॥ ३५ ॥ जिनेंद्रका शरीर नौसौ व्यंजन और एकसौ आठ लक्षण सहित होता है वह यही है ॥ ३६ ॥ ऐसा कहकर | स्वभावसे उत्पन्न दश अतिशयोंकी स्थापनाकेलिये प्रतिमाके ऊपर दस पुष्प रखे । “ भृंगारा' | इत्यादि तथा “ ओं रुचक " इत्यादि कहकर भद्रासनपर विराजमान प्रतिमाके चारों तरफ कुंकुसे रंगे हुए पुष्प अक्षतोंको वखेरै ॥ ३७॥ यह विजयादि देवताओंका सत्कार स्थापन
0
मा०वी०
अ० ४