Book Title: Pratishtha Saroddhar
Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay
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प्र०सा०
कन्छन्
॥११२॥
अ०४
स्वीकार्यापि शिवाय सद्वृतमिमे कुर्मोवतार्यार्तिकं
भान्ट्री तस्योक्षिप्य च धूपमध्वमघहत्तच्छ्रीमुखोद्घाटनम् ॥ १८३ ॥
ॐ उसहादिवढमाणाणं पंचमहाकल्लाणसंपण्णाणं महइ महावीरवड्डमाणसामीणं सिझउ मे है। है। महइ महाविज्जा अड्डमहापाडिहेरसहियाणं सयलकलाधराणं सज्जोनादरूवाणं चउतीसातिमयविसे-21
ससंजुत्ताणं वत्तीसदेविंदमणिमउडमत्थयमहियाणं सयललोयस्स संतिपुटिकल्लाणाओ आरोगाकराणं बलदेववासुदेवचक्कहररिसिमुणिजदिअणागारोवगूढाणं उहयलोयसुहयफलयराणं थुइसयसहस्सणिलयाणं परापरपरमप्पाणं अणाइणिहणाणं वलिवाहुवलिसहिदाणं वीरवीरे ओं हां क्षां सेणवीरे वड्डमाणवीरे हंस जयंत वराइएवज्जसिथलंभमयाणं सस्सदवंभपइट्टियाणं उसहाइवीरमंगलमहापुरिसाणं णिच्चकालपइट्ठियाणं इत्थ सण्णिहिदा मे भवंतु मे भवंतु ठ ठ क्ष क्ष स्वाहा । श्रीमुखोद्धाटनमंत्रः ।
येनोन्मील्य समस्तवस्तुविशदोद्भासोद्भटं केवलज्ञानं नेत्रमदर्शिमुक्तिपदवी भव्यात्मनामृव्यथा । तस्यात्रार्जुनभाजनार्पितसिता क्षीराज्यकर्परयुक्
वक्रस्वर्णशलाकया प्रतिकृतौ कुर्वे दृगुन्मीलनम् ॥ १८४ ॥ वाचन विधि हुई । अब केवलज्ञान कल्याणका स्थापन करते हैं-" इत्यक्षु” इत्यादि श्लोक | तथा ओं उसहा" इत्यादि श्रीमुखोद्धाटन मंत्र बोलकर भगवानके मुखको उघाड़े ॥१८३॥
16 ॥११२० “येनो" इत्यादि तथा “ओं नमो” इत्यादि नेत्रोन्मीलनमंत्र बोलकर नेत्रोंको उघाड़े ॥१८४॥

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