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भाण्टी.
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१० सालपरिणामविशुद्धयास्तपाप्मौषः पुण्यपुंजभाक् । ध्वस्तापायचयः कुर्याजिनयज्ञादिसंविधीन् ५७ ॥३५॥झं वं स्वरावृतं तोयमंडलद्वयवेष्टिवम् । तोये न्यस्याग्रतर्जन्या तेनानुस्नानमावहेव ॥ ५८॥
अर्धचंद्रपुटीरूपं पंचपत्रांबुजाननम् । नांतलांताप्तादिक्कोणं धवलं जलमंडलम् ॥ ५९ ॥ पृथग्विद्वयेकवाक्यांतमुक्तोच्छ्वासं जपेन्नव। वारान् गाथां प्रतिक्रम्य निषद्यालोचयेर्ततः॥६०॥
गुरुमुद्राग्रभू झं वं ह्रः पोहोभ्योमृतैः स्वके । स्रवद्भिःसिच्यमानं स्वं ध्यायन मंत्रमिमं पठेत् ॥६॥ हा विघ्नोंको दूर कर जिनेन्द्रदेवकी पूजादि क्रियाओंको करे ॥५५ । ५६।५७॥अब अनुस्नाना||दि क्रियाओंको कहते हैं-झं वं इन दो अक्षरोंको जलमंडलमें लिखकर उसको जलमें रखे। फिर तर्जनी अंगुलीसे जल लेकर अपने ऊपर डाले–यह मंत्रस्नान है ॥ ५८ ॥ जो अर्ध-18 चंद्रपुटी स्वरूप हो जिसका मुख पांचकमल पत्ररूप हो जिसके, दिशाओंके कोने “पव"IIA इन दो अक्षरोंसे व्याप्त हों और श्वेतवर्ण हो, वह जलमंडल है ॥ ५९॥ एक उच्छासमें तीन हवार इस तरह तीन उच्छासोमें नौवार मंत्रको जपकर "ईर्यापथे".इत्यादि श्लोक पढे ॥६॥
यह ईर्यापथशोधन किया है । गुरुमुद्राके अग्रभागकी भूमिमें 'झं वं ह्वः पोहः-'इन अमृत अक्षजारोंसे अपनेको सींचा हुआ समझ ध्यान करे । फिर इस “ ओं ह्रीं अमृते” इत्यादि मंत्रको INIपढता हुआ जलको शरीरपर छांट ॥६१ ॥ यह अमृतस्नान है ॥ त्रिकोण यत्रके कोनोंमें| Inaun
१ मंत्रस्नानम् । २ इयापथेशार्धनम् ।