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जन्न्न्न्कन्सन्कन्छन्
अस्माभिः परिपूज्य भक्तिभरतः पूर्णार्घमापादिताः संघस्य क्षितिपस्य देशपुरयोरप्यासतां शांतये ॥ २१ ॥
___ पूर्णार्धम् । ४ इत्यार्चिताः परब्रह्मप्रमुखाः कर्णिकार्पिताः। संतु सप्तदशाप्येते सभ्यानां शमशर्मणे ॥२२॥ 2 ततश्च जयादिदेवतागणान् वक्ष्यमाणक्रमेणोपचर्य सूर्यादिग्रहान् सोमदिक्पालोपरि व्यवस्थाप्य विधिवत् पूजयेत् । तथाहि
रक्तस्तुल्यरुगंबरादियुगिनः श्वेतः शशी लोहितो
भौमो हेमनिभौ बुधामरगुरू गौरः सितश्चासिताः। मंडलकी पूजा करे । उस समय “तेमी" इत्यादि श्लोक पढे ॥ २१ ॥ उसके बाद " इत्यचिंता" यह आशीर्वाद श्लोक पढे ॥ २२॥ उसके वाद जया आदि देवताओंको कहेजानवाले क्रमसे पूज करके सूर्यादि नवग्रहोंको सोमदिक्पालके ऊपरभागमें स्थापन करके विधिपूर्वक पूजे । उसीको वतलाते हैं-सूर्यका रंग लाल है और वस्त्र चमर छत्रविमान भी लाल हैं, चंद्रमाका वर्ण सफेद है, मंगलका लाल वर्ण है, बुध और बृहस्पतका रंग सुवर्णके ? समान है, शुक्रका रंग सफेद है, शनि, राहु और केतु-ये तीनों काले रंगके हैं। इन ग्रहोंको
१सूर्यादि राहुपर्यंत ग्रहोंको आठ दिशाओंमें स्थापन करे बुध और बृहस्पतिके मध्यमें केतुका आसन स्थापित करे
कन्ज्ज्जन्मन्ब्न्लान्लन्छन्