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तोरणोदारसौंदर्यं नानारत्नांशुकांचितम् । प्रलंबिमुक्तालंचूषहारस्रक्तारिकोज्ज्वलम् ॥१४७॥ चंदनच्छटया सिक्तं पुष्पप्रकरदंतुरम् । मुक्तास्वस्तिकविन्यासरंगावलिमनोहरम् ।। १४८ ॥ कलशादर्श गारयावारादिरमाकुलम् । संधृपधूमगंधांध गझंकारकोमलम् ॥ १४९ ॥
इति मंडपनिर्मापणम् । पूते नवमतन्मध्यभागेऽर्हत्सवनांबुना । एकाद्यष्टांतहस्तासु नंदाद्याख्यासु वेदिषु ॥ १५० ॥ जायें चकचकाट कर रही हों चार दरवाजे हों उन दरवाजोंके ऊपर की चोटीपर चूनासे लेप किये गये आठ घड़े रक्खे गये हों ॥१४६॥ वह मंडप शोभायमान चंदनवारोंसे रमणीक हो, माणिक्य आदि पांचरत्नोंसे जड़े हुए कपड़ेसे पूजित हो यानी जरी ( सलमासितारा ) के बने हुए चंदोएसे चमक रहा हो, मोतियोंके झूमका-हार-मालाओंसे तथा कांसे आदिकी | बनी हुई घंटरियोंसे बहुत प्रकाशमान हो । घिसे हुए चंदनकी छींटोंसे युक्त, पुष्पोंसे || शोभायमान, मोतियोंके सांतियोंकी रचनासे तथा अनेक रंगोंकी रचनाओंसे शोभित हो। कलश (घडा ) दर्पण, झाडी, बोये हुए जौके अंकुर, छत्र चमर आदि सामग्रीसे सुंदर हो,
काले अगर आदिकी बनी हुई दशांग धूपके धुंआंकी सुगंधीसे मस्त हुए भ्रमरोंकी झंका-18 ॥रध्वनीसे रमणीक होना चाहिये ॥१४७ ॥१४८ ॥१४९॥
___ इस प्रकार मंडप वनाने की विधि समाप्त हुई। आगे वेदी बनानेकी विधि बतलाते हैं-अर्हतविंबके गंधोदकसे नौमा मंडपको