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प्रस्तावना प्रमाण निर्णय ग्रन्थ के विवेचन से पूर्व ग्रन्थकार का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करना आवश्यक है। अतः मैं सर्वप्रथम ग्रन्थकार आचार्य वादिराज सूरि के व्यक्तित्व और कृतित्व की रूपरेखा प्रस्तुत कर रही हूँ।
प्रमाण निर्णय ग्रन्थ के रचयिता वादिराज सूरि दार्शनिक, चिन्तक और महाकवि के रूप में विख्यात हैं।ये उच्चकोटि के तार्किक होने के साथ भावप्रवण काव्य के प्रणेता भी हैं।डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य के अनुसार इनकी तुलना जैन कवियों में सोमदेव सूरि से और अन्य संस्कृत कवियों में नैषधकार श्री हर्ष से की जा सकती है।'
आचार्य वादिराज सूरि द्रमिल या द्रविड़ संघ के आचार्य थे।इसमें भी एक नन्दि संघ था, जिसकी अरूङ्गुल शाखा के अन्तर्गत इनकी गणना की गयी है।
वादिराज की षट्तर्कषण्मुख, स्याद्वाद विद्यापति और जगदेवमल्लवादी उपाधियां थीं।'
एक शिला लेख में कहा गया है कि वादिराज सभा में अकलंकदेव, धर्मकीर्ति, बृहस्पति और अक्षपाद गौतम के तुल्य हैं।स्पष्ट है कि वादिराज अनेक धर्मगुरूओं के प्रतिनिधि थे।
मल्लिषेण प्रशस्ति में वादिविजेता और कवि के रूप में इनकी स्तुति की गयी है। इन्हें जिनेन्द्र के समान वक्ता और चिन्तक बताया गया है।
एकीभाव स्तोत्र के अन्त में एक पद्य के द्वारा समस्त वैयाकरणों, तार्किकों, कवियों और सज्जनों को वादिराज से हीन बताया गया है।
वादिराज श्रीपालदेव के प्रशिष्य, मतिसागर के शिष्य और रूपसिद्धि के कर्ता दयापाल मुनि के गुरूभाई थे।'
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तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य, भाग ३, पृ.८८ वही, भाग ३, पृ.८८ षटतर्कषण्मुख स्याद्वादविद्यापति गलु जगदैकमल्लवादिगलु एनिसिद श्री वादिराज दैवरूम-श्री राइस द्वारा सम्पादित नगर तालुका का इन्सकपशन्स नं. ३६ सदसियदकलडकः कीर्तने धर्मकीर्तिर्वचसि सुरपुरोधा न्यायवादेदक्ष पादः ।इति समयगुरूणामेकतः संगतानां प्रतिनिधिरिव देवो राजते वादिराजः इन्सकपशन्स नं.३८ जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेख सं.५४, मल्लिषेण प्रशस्ति पद्य ४० वादिराजमनु शाब्दिक लोको, वादिराजमनुतार्किक सिंहः ।वादिराजमनु काव्य कृतस्ते, वादिराजमनुभव्य सहायः ।एकीभावस्तोत्र, आचार्य वादिराज सूरि, २६ मल्लिषेण प्रशस्ति पद्य ३८
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