Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 8
________________ प्राक्कथन ___ भारतीय संस्कृति के सर्वांगीण ज्ञान के लिए वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों धाराओं से समाहृत साहित्य का मूल्यांकन अपरिहार्य है।एक विशिष्ट भारतीय परम्परा के रूप में जैनों ने वाड्.मय की महत्त्वपूर्ण सेवा की है।सुप्रसिद्ध इतिहास विद्वान् डॉ. एम. विन्टरनित्ज़ ने लिखा है "I was not able to do justice to the literary achivements of the Jainas.But I hope to have shown that the Jainas have contributed their full share to the religious) ethical and scientific literature of ancient India." विद्वान् समीक्षक के कथन से स्पष्ट है कि साहित्य के क्षेत्र में जैनों की देन का पूर्णांग आकलन करना अत्यन्त आवश्यक है और यह कार्य अब तक भी यथेष्ट रूप में नहीं हो सका है।जैन समाज में जब पुस्तकों के नाम पर यद्वा तद्वा अपार्थक साहित्य प्रचुर मात्रा में छप रहा हो, तब वादिराज सूरि जैसे समर्थ मध्ययुगीन भारत के अग्रगण्य प्रतिभू महाकवि एवं न्यायशास्त्री के ग्रन्थों का राष्ट्र भाषा तक में अनुवाद प्रकाशित न हो पाना जैन समाज के लिए महान् शर्म की बात है। वादिराज सूरि संस्कृत साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् हैं। भले ही उनकी सम्पूर्ण कृतियों का विधिवत् सांगोपांग अध्ययन न हो पाया हो परन्तु उनके सरस एकीभाव स्तोत्र से भक्त धार्मिक समाज, न्यायविनिश्चय विवरण एवं प्रमाण निर्णय से सुधी तार्किक समाज तथा यशोधरचरित एवं पार्श्वनाथ चरित से सहृदय साहित्य रसिक समाज सर्वथा सुपरिचित है।आज से लगभग ढाई दशक पूर्व जब मैंने वादिराज सूरि कृत पार्श्वनाथ चरित पर पी. एच. डी. की उपाधि के निमित्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोधकार्य प्रारंभ किया था, तब उनके अन्य ग्रन्थों पर भी विहंगम दृष्टि डालने का अवसर मिला था। ... प्रमाणनिर्णय, प्रमाणमीमांसा विषयक एक लघुकाय किंतु महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। चार अध्यायों में विभक्त इस ग्रन्थ में वादिराज सरि ने मंगलाचरण में तीर्थकर वर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करके प्रमाण निर्णय के वर्णन की प्रतिज्ञा की है।अध्यायों का नामकरण विषयवस्तु के आधार पर किया गया

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