Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 7
________________ आत्माभिव्यक्ति ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर सर्वप्रथम मैं जैन बाला विश्राम धर्मकुंज धनुपुरा, आरा (बिहार) की अधिष्टात्री दिवंगता ममतामयी मां पूज्या १०५ आर्यिकारत्न श्री चन्दाबाई जी के चरणों में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ, जिनकी वात्सल्यमयी छत्रछाया में रहकर मुझे जैन दर्शन और जैन न्याय के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।मैं अपने श्रद्धेय गुरूवर डा. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य को भी नतमस्तक प्रणाम करती हूँ, जिनके अटूट वात्सल्य और सतत प्रयास से ही मैं यत्किंचित् ज्ञान प्राप्त कर सकी हूँ और जो जीवनपर्यन्त मेरा मार्गदर्शन करते रहे। मैं अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना के प्राणप्रदाता श्री ब्र. संदीप 'सरल' जी को भी विनम्र प्रणाम करती हूँ, जिनकी प्रेरणा से मैं न्याय जैसे दुरूह विषय में कार्यरत हुई और जिन्होंने प्रमाणनिर्णय ग्रन्थ के साथ-साथ न्यायविषयक अन्य सन्दर्भ ग्रन्थों को भी उपलब्ध कराकर मुझे हर प्रकार से यथेष्ट सहयोग प्रदान किया, तथा अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना से पुस्तक प्रकाशन का भी उत्तरदायित्व लेकर मुझे प्रकाशन भार से भी मुक्त रखा। जैन दर्शन और जैन न्याय के सम्मानित विद्वान डा. जयकुमार जैन प्रवक्ता संस्कृत विभाग, सनातन धर्म कालेज, मुजफ्फरनगर की भी मैं हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने अनुवाद की पाण्डुलिपि को आद्योपान्त पढ़कर आवश्यक सुझाव देने तथा प्राक्कथन लिखने का अनुग्रह किया है।मैं श्री सुमेरचन्द जैन, सम्पादक वर्णी प्रवचन, मुजफ्फरनगर के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापन करना अपना परम कर्तव्य समझती हूँ, जिन्होंने अपने निजी पुस्तकालय से न्याय विषय पर पूज्य. १०५ क्षुल्लक मनोहर लाल वर्णी जी के प्रवचनों को सुलभ कराकर मेरी न्याय की गुत्थियों को सुलझाने में सहयोग प्रदान किया है।इनके अतिरिक्त भी मैंने जिन ग्रन्थों एवं पुस्तकालयों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस अनुवाद कार्य में प्रयोग किया है, उन सबके प्रति मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ। ___मैं अपने पति श्री शीतलप्रसाद जैन सेवानिवृत्त बी. डी. ओ. की भी हृदय से आभारी हूँ,जिन्होंने गृहकार्यों में आवश्यक सहयोग देकर मुझे लेखन कार्य की सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ पुस्तक,कागज, कलम आदि आवश्यक समाग्री जुटाकर मुझे हर प्रकार की सहायता दी है। उनके सतत सहयोग के बिना मेरे लिये यह कार्य अतिदुष्कर था। डा. सूरजमुखी जैन अलका, ३५ इमामबाड़ा मुजफ्फरनगर पूर्व प्राचार्या

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