________________ 8 : प्रो० सागरमल जैन आगम संस्थान, उदयपुर के द्वारा इन प्रकीर्णकों का हिन्दी में अनुवाद करके जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है, आशा है उसके माध्यम से ये ग्रन्थ इन परम्पराओं में भी पहुँचेंगे और उनमें इनके अध्ययन और पठन-पाठन की रुचि विकसित होगी / वस्तुतः प्रकीर्णक साहित्य की उपेक्षा प्राकृत साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष की उपेक्षा है / इस दिशा में आगम . संस्थान, उदयपुर ने साम्प्रदायिक आग्रहों से ऊपर उठकर इनके अनुवाद को प्रकाशित करने की योजना को अपने हाथ में लिया और इनका प्रकाशन करके अपनी उदारवृत्ति का परिचय दिया है / प्रकीर्णक साहित्य के समीक्षात्मक अध्ययन के उद्देश्य को लेकर इनके द्वारा आयोजित 'प्रकीर्णक साहित्य : अध्ययन एवं समीक्षा' संगोष्ठी भी इनकी उदारवृत्ति का ही परिचायक है / आशा है सुधीजन इनके इन प्रयत्नों को प्रोत्साहित करेंगे जिसके माध्यम से प्राकृत साहित्य की यह अमूल्य निधि जन-जन तक पहुँचकर उनके आत्मकल्याण में सहायक बनेगी। 3. * सन्दर्भ सूची अंगबाहिरचोद्दसपइण्णयज्झाया'-धवला, पुस्तक 13, खण्ड 5, भाग 5, सूत्र 48 पृष्ठ 276, उद्धृत-जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 4, पृष्ठ 70 वही, पृष्ठ 70 नन्दीसूत्र, सम्पा० मुनि मधुकर, प्रका० आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, वर्ष 1982, सूत्र 81 उद्धृत-पइण्णयसुत्ताई, सम्पा० मुनि पुण्यविजय, प्रका० महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण 1984, भाग 1, प्रस्तावना पृष्ठ 21 वही, प्रस्तावना पृष्ठ 20-21 (क) स्थानाङ्गसूत्र, सम्पा० मुनिमधुकर, प्रका० आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, वर्ष 1981, स्थान 10 सूत्र 116 (ख) समवायाङ्गसूत्र, सम्पा० मुनि मधुकर, प्रका० आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, वर्ष 1982, समवाय 44 सूत्र 258 देविंदत्थओ (देवेन्द्रस्तव), प्रका० आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, प्रथम संस्करण 1988, भूमिका पृष्ठ 18-22 Sambodhi, Institute of Indology, Ahmedabad, Vol, XVIII year 1992-93, P.74-76. आराधनापताका (आचार्य वीरभद्र), गाथा 987 दशवैकालिक चूर्णी, पृ० 3 पं० १२-उद्धृत-पइण्णयसुत्ताई, भाग 1, प्रस्तावना पृष्ठ 19 . 10.