Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ सम्पादकीय ( द्वितीय संस्करण ) पद्मपुराणकी रचना कर श्री रविषेणाचार्यने जन-जनका बहुत कल्याण किया है । अष्टम बलभद्र श्रीरामचन्द्रजी पद्म नामसे प्रसिद्ध थे। उन्हीं के नामसे इस ग्रन्थका पद्मचरित या पद्मपुराण नाम प्रसिद्ध हुआ है। रामचन्द्र जीके भाई लक्ष्मण तीन खण्ड भरतक्षेत्रके अधिपति अष्टम नारायण थे । नारायण और बलभद्रका स्नेह जगतप्रसिद्ध है। भगवान मनिसुव्रतनाथके तीर्थमें इन महानुभावोंने अयोध्यामें जन्म लेकर भारतभूमिको अलंकृत किया था । सुदीर्घकाल व्यतीत हो जानेपर भी ये प्रत्येक भारतीयको श्रद्धाके पात्र हैं । रामचन्द्रजीका जीवन अलौकिक घटनाओंसे भरा हुआ है। वे एक मर्यादापुरुषोत्तमके रूप में पूजे जाते हैं । पिता-राजा दशरथके वे परम आज्ञाकारी थे। उनके द्वारा १४ वर्षके वनवासकी आज्ञा पाकर वे बिना किसी प्रतिक्रियाके वनको चल देते हैं। मेरे रहते हुए भरतका राज्य वृद्धिंगत नहीं हो सकेगा इसलिए उन्होंने वनवास करना ही श्रेयस्कर समझा था। पतिभक्ता सीता और भ्रातृस्नेहसे परिपूर्ण लक्ष्मण, ये दो ही उनके वनवासके साथी थे। वनवासके समय उन्होंने कितने दीनहीन राजाओंका संरक्षण किया, यह पद्मपुराणके स्वाध्यायसे स्पष्ट होता है। लक्ष्मण भ्रातस्नेहकी मूर्ति थे तो सीता भारतीय नारीके सहज अलंकारपातिव्रत्य धर्मको प्रतिकृति थी। लंकाधिपति रावणने दण्डकवनसे सीताका अपहरण किया था उसे वापस प्राप्त करने के लिए रामचन्द्रजीने रावणसे धर्मयुद्ध किया था। इस धर्मयुद्ध में रावणके अनुज विभीषण, वानरवंशके प्रमुख सुग्रीव तथा हनूमान् और विराधित आदि विद्याधरोंने पूर्ण सहयोग किया था। भूमिगोचरी राम-लक्ष्मण द्वारा गगनगामी विद्याधरोंके साथ युद्ध कर विजय प्राप्त करना, यह उनके अलौकिक आत्मबलका परिचायक है। रावणका मरण होनेपर रामचन्द्रजी उसके परिवारसे आत्मीयवत् व्यवहार करते हैं । उन्होंने उद्घोष किया था कि मुझे अन्यायका प्रतिकार करने के लिए ही रावणसे युद्ध करना पड़ा। युद्धके समाप्त होनेपर उन्होंने रावणकी विधवा रानियों तथा भ्रातृवियोगसे विह्वल विभीषणके लिए जो सान्त्वना दी थी वह उनकी उदात्त भावनाको सूचित करनेवाली है। प्रजाकी प्रसन्नता और न्यायकी सुरक्षाके वे पूर्ण पक्षपाती थे, इसीलिए तो उन्होंने कतिपय लोगोंके द्वारा अवर्णवाद प्रस्तुत किये जानेपर गर्भवती सीताका भयावह अटवीमें परित्याग कराया था। सीताका पण्योदय ही समझना चाहिए कि उस निर्जन अटवी में भी उन्हें सुरक्षाके साधन समपलब्ध हए। जिस सीताकी प्राप्ति के लिए उन्होंने रावणसे भयंकर युद्ध किया था, प्रजाकी प्रसन्नताको भावनासे उसी सीताका परित्याग करते हए उन्हें रंचमात्र भो संकोच नहीं हआ। पुराण ग्रन्थोंमें रविषेणाचार्य विरचित पद्मपुराण अपना प्रमुख स्थान रखता है। इसे आबाल-वृद्धसभी लोग बड़ी श्रद्धासे पढ़ते हैं। हिन्दू समाजमें भी रामकथाके प्रति लोगोंका सहज आदर है। विरला ही ऐसा कोई मन्दिर होगा जहाँ पद्मपुराणकी प्रति न हो। मेरे द्वारा सम्पादित पद्मपुराणका प्रथम संस्करण भारतीय ज्ञानपीठकी ओरसे सन् १९५८ में प्रका [२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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