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बाज़ार देखा नहीं था। बोला-"माँ, मैंने नई बात यही देखी कि हरद्वार का बाजार घूमता है।" ___ माँ हरद्वार हो आई थी। बाजार घूमने की बात सुनकर वह घूम गई और चौंककर उसने पूछा- "कैसे घूमता है रे हरद्वार का बाजार ?"
बेटे ने नये सिरे से आश्चर्य में डूबकर कहा-"माँ, मैं हर की पैड़ी नहाने गया, तो देखा बाजार इधर था और नहाकर लौटा, तो देखा बाजार उधर हो गया !"
दुःख पाकर भी माँ हँस पड़ी और भोले बेटे को छाती से लगा लिया ! __ अब देखिये ! बाजार तो दोनों ओर था । पर कानेपन के कारण वह एक ओर ही देख सका । ऐसे ही वे विचारक, जो एकान्त के झमेले में पड़कर अपनी एक दृष्टि--आँख से वस्तु-स्वरूप के सत्य को देखने का प्रयत्न करते हैं। वस्तु के एक पहलू की ओर ही देख पाते हैं। पर सत्य होता है दूसरी ओर भी। किन्तु कानेपन के कारण दूसरी ओर का सत्य उन्हें दीख नहीं पड़ता। एकान्त का पक्षान्ध भला प्रकाश के दर्शन कैसे कर सकता है ? 'नयवाद' मनुष्य की दृष्टि के इस कानेपन को मिटाकर वस्तु-स्वरूप को अनेक पहलुओं से देखने की जीवित प्रेरणा प्रदान करता है । अपने घर के आँगन में खड़ा व्यक्ति अपने ऊपर प्रकाश देखता है, छत पर चढ़कर देखे, तो सब जगह प्रकाश ही प्रकाश-यह 'नयवाद' का जीवंत आदर्श है।
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