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सब अपने-अपने दृष्टिकोण से सत्य की व्याख्या कर रहे हैं । परन्तु, उनके कथन में अत्यन्त भेद है। 'नयवाद' की सतेज आँख से ही उन तथ्यांशों के प्रकाश को देखा जा सकता है।
'नयवाद' हमें सत्य-दर्शन के लिए आँखें खोलकर सब ओर देखने की दूरगामी प्रेरणा प्रदान करता है। उसका कहना है कि सारे संसार को तुम अपनी ही कल्पना की आँखों से मत देखो-परखो । दूसरे को हमेशा उसकी आँख से देखिए; उसके दृष्टि-कोण से परखिए । सत्य वही और उतना ही नहीं है कि जो-जितना आप देख पाये हैं। फिर भी, यह तो सम्भव है कि हाथी के स्वरूप का अलग-अलग वर्णन करने वाले वे छहों व्यक्ति शत-प्रतिशत सच्चे होकर भी बस इसलिए अधूरे हों कि एक ने हाथी को देखा था सूड की तरफ से, दूसरे ने देखा था पूछ की तरफ से, तीसरे ने पेट छूकर, चौथे ने कान पकड़ कर, पाँचवें ने दांतों की ओर से और छठे ने पाँव की तरफ से । इस कानेपन को दूर कीजिए । क्योंकि काना व्यक्ति एक ओर के ही सत्य को देख सकता है। सत्य का दूसरा पहलू उसकी आँख से लुप्त ही रहता है।
एक पुरानी लोक-कथा है । किसी माँ का काना बेटा हरद्वार गया । लौटा तो माँ ने पूछा-'हरद्वार में तुझे सबसे अच्छा क्या लगा रे ?" गाँव के भोले बेटे ने तब तक कहीं
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