Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नैगम आदि सात नय भगवान् के प्रवचन की किस प्रकार सेवा करते हैं, इस बात को स्पष्ट करते हैंसर्वे नया अपि विरोधभतो मिथस्ते.. सम्भूय साधु समयं भगवन् ! भजन्ते । भूपा इव प्रतिभटा भुवि सार्वभौमपादाम्बुजं प्रधनयुक्तिपराजिता द्राक् ॥२२।। अर्थ भगवन् ! जिस प्रकार परस्पर विरोध रखने वाले राजा एकत्रित होकर युद्ध-रचना में चक्रवर्ती के चरण कमलों की सेवा करते हैं ; उसी प्रकार ये सातों नय परस्पर विरोधी होते हुए भी, आपके सुन्दर आगम (प्रवचन) की एकत्रित होकर सेवा करते हैं। विवेचन जैन-दर्शन की मूल चिन्तन-धारा के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक है। जो विचार वस्तु के उन अनन्त धर्मों में से किसी एक विशिष्ट धर्म को लेकर अन्य धर्मों की ओर उदासीन भाव रखते हुए वस्तु का सापेक्ष For Private And Personal Use Only

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