Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और पर्याय अर्थात् भेद-ये दो ही दृष्टियाँ हैं और इन दो दृष्टियों का प्रतिनिधित्व करने वाले नय भी दो ही हैंद्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक । अन्य स व भेद-प्रभेद इन्हीं दो नयों की शाखा-प्रशाखा के रूप में हैं। प्रस्तुत श्लोक में नय के सात भेदों का समावेश द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक इन दो नयों में किया गया है । नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र-इन पहले चार नयों का अन्तर्भाव द्रव्यास्तिक नय में होता है; क्योंकि ये चार नय द्रव्य पर आश्रित रहते हैं। अन्त के शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये नय पर्याय को लेकर प्रवृत्त होते हैं, अतः पर्यायास्तिक नय में ही इनका समावेश होता है। इस प्रकार सात नयों का द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक इन दो नयों में समावेश समझना चाहिए । ५४ ] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95