Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तिम उपसंहारइत्थं नयार्थकवचःकुसुमैर्जिनेन्दु वीरोऽर्चितः सविनयं विनयाभिधेन । श्रीद्वीपबन्दरवरे विजयादिदेवसूरीशितुर्विजयसिंहगुरोश्च तुष्ट्य ॥२३।। अर्थ इस प्रकार विनयविजय ने, विजयदेव सूरि के शिष्य और अपने गुरु विजयसिंह के संतोष के लिये नय का अर्थ प्रतिपादन करने वाले वचन-रूपी पुष्पों से श्री वीर जिनेश्वर की विनयपूर्वक दीवबंदर में पूजा की। विवेचन इस अन्तिम उपसंहारात्मक श्लोक में ग्रन्थकार ने अपने प्रगुरु, गुरु तथा अपने नाम का उल्लेख किया है। 'नय-कर्णिका' के प्रणयन का गुरुतर कार्य पूज्य गुरुदेव की असीम कृपा से ही सम्पन्न हुआ है और उन्हीं की प्रसन्नता के लिए मेरा यह प्रयास है-प्रस्तुत श्लोक से उपाध्यायश्री जी का यह आन्तरिक विनय-भाव झलकता है । और इस ६२ ] . For Private And Personal Use Only

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