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अनेक अर्थ वाली हो जाती । है जैसे-उपहार (भेंट), प्रहार (चोट) आहार (भोजन) विहार (प्रस्थान) संहार (विनाश) परिहार (त्याग)।
इस प्रकार विविध शब्दों के विविध संयोगों के आधार पर अर्थ-भेद की जितनी भी परम्पराएँ प्रचलित हैं, वे सब शब्दनय के अन्तर्गत आजाती हैं। शब्दशास्त्र का समूचा विकास शब्दनय की मूल-भित्ति पर ही हुआ है।
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