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बैठा सुशोभित हो रहा हो । । इसी दृष्टि से उपाध्याय यशोविजयजी कह रहे हैं -
"एवंभूतस्तु सर्वत्र, व्यञ्जनार्थविशेषणः । राज-चिन्हैर्यथा राजा, नान्यदा राजशब्दभाक् ॥
-नयोपदेश, ३९ इसी प्रकार 'नृप' कहलाने का अधिकारी भी वह तभी है, जिस समय प्रजा की रक्षा कर रहा हो।
सारांश यह है कि जब कोई क्रिया हो रही हो, उसी समय उससे सम्बन्धित विशेषण अथवा विशेष्य नाम का व्यवहार करने वाली सब मान्यताएँ एवंभूत नय कहलाती हैं।
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