Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय नैगम की अपेक्षा न्यून है क्योंकि वह केवल सामान्य का ग्रहण करता है । व्यवहार का विषय संग्रह से भी न्यून है; क्योंकि वह संग्रहनय द्वारा संगृहीत विषय का ही कुछ विशेषताओं के आधार पर पृथक्करण करता है। ऋजुसूत्र का विषय व्यवहार से भी कम है ; क्योंकि व्यवहार तो भूत, भविष्यत् और वर्तमान-इन तीनों काल के विषय की सत्ता स्वीकार करता है ; जबकि ऋजुसूत्र भूत और भविष्यत् को छोड़कर वर्तमान की सीमा में ही बन्द है । शब्दनय का विषय ऋजुसूत्र से भी न्यून है, क्योंकि वह काल, कारक, लिङ्ग और उपसर्ग आदि के भेद से अर्थ में भेद मान कर चलता है । समभिरूढ़नय का विषय शब्दनय से भी थोड़ा हो गया है ; क्योंकि वह व्युत्पत्ति-भेद से अर्थ-भेद की नीति पर विश्वास करता है ; जबकि शन्दनय समानलिङ्ग वाले पर्यायवाची शब्दों में किसी प्रकार का भेद स्वीकार नहीं करता । एवंभूत का विषय तो अत्यन्त अल्प हो जाता है; क्योंकि वह अर्थ को तभी उस शब्द द्वारा वाच्य मानता है, जबकि व्युत्पत्ति-सिद्ध अर्थ उस पदार्थ में घटित हो रहा हो। ___ इस पर से यह बात सूर्य के प्रकाश की भांति स्पष्ट हो जाती है कि पूर्व-पूर्व नय की अपेक्षा उत्तर-उत्तर नय का विषय न्यून होता चला गया है। ज्यों-ज्यों विषय अल्प होता १४६ For Private And Personal Use Only

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