Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www जाता है, त्यों-त्यों वह नय सूक्ष्म और शुद्ध होता जाता है। दूसरे शब्दों में, सूक्ष्म होने के कारण ही सातों नय उत्तरोत्तर विशुद्ध होते चले गये हैं। नय के उत्तर-भेदों की संख्या सात सौ है । नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत-ये सात मूल नय हैं । एक- एक मूलनय के सौ-सौ उत्तर भेद होने से सातों मूल नयों के कुल सात सौ उत्तर भेद होते हैं। श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी यही बात कही है"एक्केक्को य सयविहो सत्त नयसया हवंति एमेव ।" -विशेषा०, २२६४ एक-एक नय के सौ-सौ भेद होने से नयों के कुल सात सौ भेद होते हैं। ५० For Private And Personal Use Only

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