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व्यतिरेकि दृष्टान्त द्वारा एवंभूतनय के विषय को दृढ़ करते हैंयदि कार्यमकुर्वाणोऽपीष्यते तत्तया स चेत् ।
तदा पटेऽपि न घटव्यपदेशः किमिष्यते १ ॥ १८ ॥ अर्थ
अपनी क्रिया न करता हुआ भी पदार्थ यदि उस नाम से मिहित किया जाय तो फिर पट में 'घट' शब्द की वाच्यता क्यों न स्वीकार की जाय ?
विवेचन
प्रस्तुत श्लोक में एवंभूतनय के विषय को पुष्ट करने के लिए ग्रन्थकार स्वयं एक कुशल प्राश्निक बनकर वादी से पूछ रहे हैं कि - "कोई पदार्थ अपनी क्रिया न करता हुआ भी यदि उस नाम से पुकारा जाय अर्थात् अपनी क्रिया से शून्य पदार्थ भी यदि तन्नाम से अभिहित किया जाय, तो फिर पट ने ही क्या अपराध किया है ? उसमें भी 'घट' शब्द की वाच्यता क्यों नहीं स्वीकार कर ली जाती ? दूसरे शब्दों में, यदि जलाहरणादि अपनी क्रिया न करता हुआ भी घट'घट' कहला सकता है, तो जलाहरण क्रिया न करता हुआ पट भी घट क्यों नहीं कहला सकता ? क्योंकि जलाहरण
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