Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं मानता। परन्तु, काल, कारक, लिङ्ग और उपसर्ग आदि के भेद से अर्थ-भेद अवश्य मानता है । उसका मन्तव्य यह है कि. जैसे भूत, भविष्यत् और वर्तमान- इन तीनों कालों में कोई सूत्र - रूप एक वस्तु नहीं है; किन्तु वर्तमान क्षणवर्ती वस्तु ही एकमात्र कार्य साधक होने से वस्तु कहलाती है, वैसे ही भिन्न-भिन्न काल, कारक, लिङ्ग और उपसर्ग आदि से युक्त शब्दों द्वारा अभिधेय वस्तुएँ भी भिन्न-भिन्न माननी चाहिएँ । विचार की इस गहराई में पहुँचकर मनुष्य की बुद्धि काल, लिङ्ग आदि के भेद से अर्थ में भी भेद करने लगती है । उसका खुलासा निम्न प्रकार है - काल-भेद से अर्थ-भेद - शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि 'अयोध्या नाम की नगरी थी।' इस वाक्य का अभिप्राय यही है कि अयोध्या नाम की नगरी भूतकाल में थी, वर्तमान में नहीं; जबकि लेखक के समय में भी अयोध्या नगरी मौजूद है। उसके विद्यमान होते हुए 'थी' यह भूतकाल का प्रयोग क्यों किया ? इसका उत्तर शब्दनय यही देता है। कि वर्तमान कालीन अयोध्या से भूतकाल की अयोध्या तो भिन्न ही है और उसी का वर्णन प्रस्तुत होने से 'अयोध्या नगरी थी' ऐसा प्रयोग किया गया । यह काल-भेद से अर्थभेद का उदाहरण हुआ । For Private And Personal Use Only [ ३५

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