Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शब्दनय www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थं शब्दनयोऽनेकैः पर्यायेरेकमेव च । कुम्भ-कलश-घट । द्ये कार्थवाचकाः ॥ १४ ॥ मन्यते अर्थ " par gan शब्दनय अनेक पर्यायों [शब्दों] द्वारा सूचित वाच्यार्थ को एक ही पदार्थ समझता है । जैसे कुम्भ, कलश और घट आदि अनेक शब्द ( पर्याय) एक ही (घट) पदार्थ को कहने वाले हैं । विवेचन शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत- ये तीनों नय शब्दशास्त्र से सम्बन्ध रखते हैं । शब्दनय, शब्द-भेद होने पर भी अर्थ - भेद स्वीकार नहीं करता । जैसे कुम्भ, कलश और घट शब्द अलग-अलग होने पर भी इन तीनों शब्दों का अर्थ घटरूप पदार्थ एक ही है । ग्रन्थकार ने शब्दमय का यहाँ पर 'शब्द-भेद से अर्थ-भेद नहीं होता' - केवल इतना ही अभिप्राय लिया है । परन्तु, शब्दन का अर्थ इससे और अधिक व्यापक है । शब्दनय केवल एक लिंग वाले पर्यायवाची शब्दों में ही किसी प्रकार का अर्थ भेद ३४ ] For Private And Personal Use Only

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