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मात्र से राजा होता है, वह नाम राजा, जो राजा का चित्र या उसकी प्रतिकृति हो, वह स्थापना राजा, जो भूतकाल राजा रह चुका हो अथवा भविष्य में राजा बनने वाला हो, वह द्रव्य राजा और जो वर्तमान में राज-पद का अनुभव करता हुआ सिंहासन पर शोभा पा रहा है, वह भाव राजा । राजा शब्द के ये चार निक्षेप हुए।
इन चार निक्षेपों में से ऋजुसूत्रनय केवल भाव निक्षेप को ही मानता हैं । ऋजुसूत्र वस्तु की अतीतकालीन पर्याय को स्वीकार नहीं करता ; क्योंकि वह नष्ट हो गई । भावी पर्याय को भी नहीं मानता; क्योंकि वह अभी अनुत्पन्न स्थिति में है । इस प्रकार यह नय पदार्थ के वर्तमान भाव (पर्याय ) को ग्रहण करने वाला है। भवतीति भावः अर्थात् वर्तमान में जो पर्याय अस्तित्वरूप में मौजूद हो - उसे ग्रहण करने के कारण ऋजुसूत्र भावनिक्षेप का ग्राहक है । इसी प्रकार शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत- ये तीन नय भी भावग्राही होने के कारण भावनिक्षेप को ही स्वीकार करते हैं, नाम, स्थापना और द्रव्य को नहीं । कहा भी है
नामाइतियं दव्वट्ठियस्स भावो य पज्जवण्यस्स । संगहववहारा पढमगस्स सेसा य इयरस्स ||
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- विशेषा ०, ७५
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