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ऋजुसूत्र नय और आगे के शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नय किस निक्षेप को मानते हैं, इस बात का खुलासा करते हैं
नामादिषु चतुर्वेषु, भावमेव च मन्यते । न नामस्थापनाद्रव्याण्येवमग्रेतना अपि ॥१३॥
अर्थ ऋजुसूत्र और आगे के तीन नय चार निक्षेपों में से नाम, स्थापना और द्रव्य को छोड़कर केवल भाव निक्षेप को स्वीकार करते हैं।
विवेचन __ एक ही शब्द, प्रयोजन तथा प्रसङ्ग के अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। कम-से-कम प्रत्येक शब्द के चार अर्थ तो पाये ही जाते हैं। वे ही चार अर्थ उस शब्द के अर्थ-सामान्य के चार विभाग हैं । ये विभाग ही निक्षेप या न्यास कहलाते हैं। वे चार निक्षेप ये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। ___ शब्द का अर्थ करने में कोई गड़बड़ न हो और वक्ता का अभिप्राय ठीक-ठीक समझ में आ जाय-इस भावना
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