Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋजुसूत्र नय और आगे के शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नय किस निक्षेप को मानते हैं, इस बात का खुलासा करते हैं नामादिषु चतुर्वेषु, भावमेव च मन्यते । न नामस्थापनाद्रव्याण्येवमग्रेतना अपि ॥१३॥ अर्थ ऋजुसूत्र और आगे के तीन नय चार निक्षेपों में से नाम, स्थापना और द्रव्य को छोड़कर केवल भाव निक्षेप को स्वीकार करते हैं। विवेचन __ एक ही शब्द, प्रयोजन तथा प्रसङ्ग के अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। कम-से-कम प्रत्येक शब्द के चार अर्थ तो पाये ही जाते हैं। वे ही चार अर्थ उस शब्द के अर्थ-सामान्य के चार विभाग हैं । ये विभाग ही निक्षेप या न्यास कहलाते हैं। वे चार निक्षेप ये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। ___ शब्द का अर्थ करने में कोई गड़बड़ न हो और वक्ता का अभिप्राय ठीक-ठीक समझ में आ जाय-इस भावना ३० ] For Private And Personal Use Only

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