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लिंग-भेद से अर्थ-भेद-शब्दनय स्त्रीलिङ्ग से वाच्य अर्थ का बोध पुल्लिङ्ग से नहीं मानता, पुल्लिङ्ग से वाच्य अर्थ का बोध नपुंसकलिङ्ग से नहीं मानता और नपुंसकलिङ्ग से वाच्यार्थ का बोध पुल्लिङ्ग अथवा स्त्रीलिङ्ग से नहीं करता। जैसे कुत्रा, कुई । यहाँ पर 'कुआ' शब्द पुल्लिङ्ग है और 'कुई' शब्द स्त्रीलिङ्ग है । इन दोनों का अर्थ-भेद भी व्यवहार में सर्वविदित है। कितने ही ताराओं को नक्षत्र के नाम से सम्बोधित किया जाता है, फिर भी शब्दनय की दृष्टि से 'अमुक तारा नक्षत्र है' अथवा 'यह मघा नक्षत्र है'-ऐसा शब्द-व्यवहार नहीं किया जा सकता । क्योंकि इस नय की दृष्टि से लिङ्ग भेद में अर्थ-भेद होने के कारण 'तारा और नक्षत्र' तथा 'मघा और नक्षत्र' इन दोनों शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग नहीं कर सकते ।
कारक-भेद से अर्थ-भेद-देवदत्त ने, देवदत्त को, देवदत्त के लिए, देवदत्त से अथवा देवदत्त पर श्रादि शब्दों में कारक-भेद से अर्थ-भेद है।
उपसर्ग-भेद से अर्थ-भेद-उपसर्ग के कारण एक ही धातु के भिन्न-भिन्न अर्थ हो जाते हैं । जैसे 'हृ' धातु का अर्थ है हरण करना-चुराना। परन्तु उपसर्ग लगाने से वह
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