Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra AAAAAोजपात www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्य धर्म है और 'मनुष्य' जीव की विशेष पर्याय है । श्रतः चैतन्यरूप में सामान्य और मनुष्य रूप में विशेष धर्म स्वीकार कर लिया गया है। दूसरा उदाहरण लीजिए । 'यह घटत्वजातियुक्त रक्त घट है'- इस वाक्य में घट में सामान्य धर्म घटत्व है, और विशेष धर्म रक्त वर्ण है । इसलिए घटत्व-रूप में सामान्य धर्म और रक्त-रूप में विशेष धर्म होने से दोनों धर्म स्वीकृत हो गये। पर रहेगा दोनों ग्रहण में गौ- प्रधान-भाव । के भाष्यकार ने नैगम का दूसरा अर्थ भी किया है । उनके कथन का आशय यह है कि - "लोकार्थ = लोकरूढ़ि के बोधक पदार्थ निगम कहलाते हैं, उन निगमों में जो कुशल है, वह नैगम नय है । अथवा जिसके अनेक गम- जानने के मार्ग हैं, वह नैगमनय कहलाता है C लोगत्थ- निबोहा वा निगमा, तेसु कुसलो भवो वा यं । हवा जं नेगगमोऽणेगपहा रोगमा तेणं ॥ - विशेषावश्यक भाष्य; २१८७ लोकार्थ - लोकरूढ़ि अनेक तरह की होती है, अतः उनसे उद्भूत नय भी अनेक तरह का हो जाता है । उदाहरण के लिए कुल्हाड़ी हाथ में लेकर जंगल की ओर जाते [ १३ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95