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संग्रह नय
संग्रहो मन्यते वस्तु, सामान्यात्मकमेव हि । सामान्य-व्यतिरिक्तोऽस्ति, न विशेषःखपुष्पवत्॥६॥
अर्थ संग्रहनय वस्तु को केवल सामान्यात्मक ही मानता है, क्योंकि सामान्य से अलग विशेष आकाश के फूल की तरह कोई अस्तित्व नहीं रखता।
विवेचन - पहले कहा जा चुका है कि जैन-दर्शन की दृष्टि से संसार की प्रत्येक वस्तु सामान्य-विशेषात्मक है। इन दोनों धर्मों में से सामान्य धर्म का ग्रहण करना और विशेष धर्म के प्रति उपेक्षाभाव रखना संग्रहनय है। 'संगृह्णातीति संग्रहः'इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो विचार किसी एक सामान्य तत्व के आधार पर पदार्थों का संग्रह करता है, वह संग्रहनय कहा जाता है। ___ संग्रहनय के दो भेद हैं-पर संग्रह और अपर संग्रह । पर संग्रह में सब पदार्थों का एकत्व अभीष्ट होता है । जीव, अजीव पादि जितने भी भेद हैं, उन सबका सत्ता में समावेश हो
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