Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1th 2018. wwwww www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष के अतिरिक्त वह वनस्पति, सामान्य रूप में मिलती कहाँ है ? यदि विशेष के अतिरिक्त वनस्पति, सामान्य रूप में उपलब्ध होती है, तो हम पूछेंगे कि 'क्या वह आम, नीम, कदम्ब, जामुन, नीम आदि विशेषों से भिन्न है ? यदि भिन्न मान लें, तो वह आम, जामुन, नीम आदि का अभावरूप होने के कारण घट, पट की तरह अवनस्पति रूप ही हुई । अतः व्यवहार नय सामान्य-रहित विशेष को ही ग्रहण करता है । वह ऐसा विचार करता है कि वनस्पति यह क्या वस्तु है ? आम, नीम, जामुन है अथवा बबूल है ? क्योंकि इनके अतिरिक्त वृक्षत्वरूप सामान्य तो कहीं दृष्टिगत होता नहीं । श्रतः विशेष को ग्रहण किये विना सामान्य निरर्थक है । श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी कहा है कि "श्रम आदि विशेष से वह वनस्पतिरूप सामान्य क्या भिन्न है ? यदि भिन्न है, तो विशेष से भिन्न होने के कारण वह आकाश-पुष्प की भांति अविद्यमान है " चूयाईए हिंतो को सो णो वसई पाम १ नस्थि विसेत्थं तरभावाश्रो सो खपुष्कं व ।।" — विशेषा ०, For Private And Personal Use Only ३५ [ २३

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