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ही बड़ा हो जायगा । और सामान्य जितना छोटा होगा, संग्रह नय भी उतना ही छोटा बन जायगा । उदाहरण के लिए, जैसे कोई व्यक्ति वस्त्रों के अलग-अलग प्रकारों और डिजाइनों पर ध्यान न देते हुए केवल वस्त्ररूप सामान्य तत्त्व को ही दृष्टि में रखकर कह उठता है कि 'यहाँ तो वस्त्र ही वस्त्र भरा पड़ा है ।' यहाँ पर वस्त्रत्व रूप सामान्य तत्त्व के द्वारा वस्त्रमात्र का संग्रह हो गया। यहाँ पर सत्ता का क्षेत्र बड़ा है । अतः संग्रह नय भी बड़ा ही हुआ । परन्तु जब हम कहीं पर खद्दर का ढेर देखकर कहते हैं कि 'यहाँ तो खद्दर ही खद्दर पड़ा हुआ है, तो यहाँ पर खद्दर रूप सामान्य तत्त्व के आधार से खद्दरमात्र का संग्रह कर लिया गया । यहाँ पर वस्त्ररूप सामान्य तत्त्व की अपेक्षा खद्दररूप सत्ता का क्षेत्र छोटा है, तो संग्रह नय भी छोटा ही हुआ।
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