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नैगम नय
नैगमो मन्यते वस्तु, तदेतदुभयात्मकम् । निर्विशेषं न सामान्यं, विशेषोऽपि न तद्विना॥५॥
अर्थ
नैगम नय वस्तु को उभयरूप- सामान्य-विशेषात्मक मानता है। कारण, विशेष के बिना सामान्य नहीं रहता और सामान्य के विना विशेष नहीं रहता।
विवेचन "न एको गमो विकल्पो यस्येति नैगमः"--इस व्युत्पत्ति के आधार पर जिसका सामान्य अथवा विशेष कोई एक विकल्प नहीं होता, प्रत्युत दोनों विकल्प होते हैं, वह नैगम नय है।
णेगाई माणाई, सामन्नोभय-विसेसनाणाई । जं तेहिं मिणइ तो णेगमो णो णेगमाणोति ॥
-विशेषाव० २१६८ अर्थात् सामान्य और विशेष उभय-ज्ञान-रूप अनेक प्रमाणों के द्वारा जो वस्तु को स्वीकार करता है, वह नैगम नय है।
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