Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAmarn नैगम नय नैगमो मन्यते वस्तु, तदेतदुभयात्मकम् । निर्विशेषं न सामान्यं, विशेषोऽपि न तद्विना॥५॥ अर्थ नैगम नय वस्तु को उभयरूप- सामान्य-विशेषात्मक मानता है। कारण, विशेष के बिना सामान्य नहीं रहता और सामान्य के विना विशेष नहीं रहता। विवेचन "न एको गमो विकल्पो यस्येति नैगमः"--इस व्युत्पत्ति के आधार पर जिसका सामान्य अथवा विशेष कोई एक विकल्प नहीं होता, प्रत्युत दोनों विकल्प होते हैं, वह नैगम नय है। णेगाई माणाई, सामन्नोभय-विसेसनाणाई । जं तेहिं मिणइ तो णेगमो णो णेगमाणोति ॥ -विशेषाव० २१६८ अर्थात् सामान्य और विशेष उभय-ज्ञान-रूप अनेक प्रमाणों के द्वारा जो वस्तु को स्वीकार करता है, वह नैगम नय है। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95