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wrrrrr.... प्रत्येक वस्तु में सामान्य और विशेष दोनों ही धर्म रहते हैं । नैगम नय सामान्य तथा विशेष दोनों को ग्रहण करता है। विशेषता इतनी ही है कि किसी समय हमारी दृष्टिं सामान्य धर्म की अोर होती है और किसी समय विशेष की ओर । जिस समय हमारी विवक्षा सामान्य की ओर होती है, उस समय विशेष गौण हो जाता है और जिस समय हमारा प्रयोजन विशेष से होता है, उस समय सामान्य गौण हो जाता है। सामान्य और विशेष का गौण प्रधानभाव से ग्रहण करना नैगम नय है। दूसरे रूप में यों भी कहा जा सकता है कि सामान्य का ग्रहण करते समय विशेष को गौण समझना और सामान्य को प्रधान समझना तथा विशेष का ग्रहण करते समय सामान्य को गौण समझना और विशेष को मुख्य समझना नैगम नय है।
सामान्य और विशेष के ग्रहणकाल में इस गौण-प्रधानभाव की दृष्टि के कारण ही नैगम नय विकलादेश (नय) कहलाता है। सकलादेश (प्रमाण) में यह गौण प्रधान भाव की दृष्टि नहीं होती, जबकि नैगमनय सामान्य और विशेष दोनों को ग्रहण करते समय उनकी गौणता और प्रधानता पर ही टिका हुआ है। उदाहरण के तौर पर 'यह चैतन्यवान् जीव मनुष्य है'-इस वाक्य में 'चैतन्य' जीव का
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