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युगान्तरं योगमुपासतां वा । तथापि ते मार्गमनापतन्तो, न मोक्ष्यमाणा अपि यान्ति मोक्षम् ।।
-अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिं० 'नयवाद' कानेपन को मिटाता है
'नयवाद' कहता है कि मनुष्य को दो आँखें मिली हैं, अतः वह एक से अपना,तो दूसरी से विरोधियों का सत्य देखे । जितनी भी वचन-पद्धतियाँ हैं, उन सब का लक्ष्य सत्य के दर्शन कराना है। जैसे द्वितीया के चन्द्रमा का दर्शन करने वाले व्यक्तियों में से कोई एक तो ऐसा बतलाता है कि "चन्द्रमा उस वृक्ष की टहनी से ठीक एक बित्ता ऊपर है।" दूसरा व्यक्ति कहता है "चन्द्रमा इस मकान के कोने से सटा हुआ है ।" तीसरा बोलता है "चन्द्रमा उस उड़ते हुए पक्षी के दोनों पंखों के बीच में से दीख रहा है।” चौथा व्यक्ति संकेत करके कहता है-'चन्द्रमा ठीक मेरी अंगुली के सामने नजर आ रहा है।" इन सब व्यक्तियों का लक्ष्य चन्द्र-दर्शन कराने का है, और वे अपनी शुद्ध नीयत से ही अपनी-अपनी प्रक्रिया बतला रहे हैं। पर, एक-दूसरे के कथन में परस्पर आकाश-पाताल का अन्तर है।
इसी प्रकार सभी सत्य-गवेषी दार्शनिक विचारकों का एक ही उद्देश्य है-साधकों को सत्य के दर्शन कराना ।
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