________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ग्रन्थकार का सक्षिप्त परिचय
'नय-कर्णिका' के रचयिता जैन-जगत् के प्रख्यात विद्वान् श्री विनय विजय जी हैं। उनके जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी का अभाव है । उसका कारण यह है कि न तो स्वयं उन्होंने अपने जीवन पर विशेष प्रकाश डाला और न उनके समकालीन किसी अन्य विद्वान् ने ही उनके विषय में कुछ लिखा । उनका जन्म कब और कहाँ हुआ, किस प्रकार उनके अन्तर्हृदय में त्याग - वैराग्य की ज्योति जागीइस सम्बन्ध में कोई तथ्यपूर्ण उल्लेख नहीं मिलता । 'लोकप्रकाश' के प्रत्येक सर्ग के अन्त में उन्होंने एक ही प्रकार का श्लोक दिया है, जिसमें उन्होंने अपनी माता का नाम राजश्री [ राजबाई ], पिता का नाम तेजपाल बतलाया है, और अपने आपको उपध्याय श्री कीर्ति विजय जी का शिष्य होने का उल्लेख किया है"विश्वाश्चर्यदभीतिकीर्तिविजयश्री वाचकेन्द्रान्तर. दू, राजश्रीतनयोऽतनिष्ठ विनयः श्री तेजपालात्मजः काव्यं यत्किल तत्र निश्चितजगत्तत्त्वे प्रदीपोपमे, सम्पूर्णः खलु सप्तविंशतितमः सर्गे निसर्गोज्ज्वलः || ”
राजबाई और तेजपाल - ये दोनों नाम प्रायः वणिक् जाति के अतिरिक्त अन्य जाति में नहीं मिलते। अतः जाति की दृष्टि से श्री विनय विजय जी वणिक थे, ऐसा अनुमान होता है ।
For Private And Personal Use Only