Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यग्दर्श का अर्थ है-तत्त्वार्थ का श्रद्धान । तत्व नौ हैंजीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष । इन तत्वों का यथार्थ परिज्ञान हुए विना मुमुक्ष साधक मोक्ष-मार्ग में अबाध गति नहीं कर सकता। अतः मोक्ष के जिज्ञासु के लिए इन तत्वों का यथार्थ ज्ञान परम आवश्यक है। तत्त्व-ज्ञान के अमोघ उपाय हैं-प्रमाण और नय । जैसा कि श्राचार्य उमास्वाति ने कहा है - "प्रमाणनयैरधिगमः" -तत्त्वार्थ सूत्र १-६ --प्रमाण और नयों के द्वारा तत्त्वों का परिज्ञान होता है। श्रत के दो उपयोग होते हैं-प्रमाण और नय। प्रमाण को सकलादेश और नय को विकलादेश भी कहते हैं । जैनदर्शन की विचारधारा के अनुसार प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है"अनन्तधर्मात्मकं वस्तु' ____ -स्याद्वादमंजरी नय अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म (अंश) का बोध कराता है और प्रमाण अनेक धर्मों का । प्रमाण में पदार्थ के २] For Private And Personal Use Only

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