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समस्त धर्मों की विवक्षा होती है, नय में एक धर्म के सिवाय अन्य धर्मों की विवक्षा नहीं होती। नय-ज्ञान इसीलिए 'सम्यक्-सच्चा माना जाता है कि वह अपने विवक्षित धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का प्रतिषेध नहीं करता, अपितु उन धर्मों के प्रति वह उदासीन रहता है। शेष धर्म से उसका कोई प्रयोजन नहीं होता। प्रयोजन न होने के कारण वह उन धर्मों का न तो विधान ही करता है और न प्रतिषेध ही। दूसरे शब्दों में यों भी कहा जा सकता है कि नय वस्तु को एक दृष्टि से ग्रहण करता है और प्रमाण अनेक दृष्टियों से । इस प्रकार प्रमाण और नय द्वारा जीवादि तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान ही सम्यग्ज्ञान है। ___ नय-कर्णिका में उपाध्याय श्री विनयविजयजी ने श्री वर्धमान स्वामी की स्तुति के साथ-साथ सात नयों का संक्षेप में सरल पद्धति से प्रतिपादन किया है। प्रस्तुत कारिका में उन्होंने मंगलाचरण किया है और साथ ही ग्रन्थ के विषय का निर्देश करते हुए यह भी बतला दिया है कि इस ग्रंथ में हम संक्षेप में सात नयों की व्याख्या करेंगे ।
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