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नय-कर्णिका मंगलाचरण और विषय
वर्धमानं स्तुमः सर्वनयनद्यर्णवागमम् । संक्षेपतस्तदुन्नीत – नयभेदानुवादतः ॥१॥
अर्थ
सर्वनयरूपी नदियों के लिए जिनका प्रवचन समुद्र के समान गम्भीर है, उनके द्वारा प्ररूपित नय-भेदों को अनुवाद के रूप में दुहराकर हम श्री वर्धमान स्वामी की स्तुति करते हैं।
विवेचन मानव-जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष है । इसलिये तीर्थंकरों और जैन-धर्म के महान आचार्यों ने उसकी प्राप्ति के साधनों का तात्त्विक रूप में निर्देश किया है । मोक्ष-प्राप्ति के उन्होंने मुख्यतः तीन साधन बतलाए हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
और सम्यक चारित्र । जैन-दर्शन के सर्वप्रथम सूत्रकार आचार्य उमास्वाति का सूत्र है"सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः"
---तत्त्वार्थसूत्र १-१
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