Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नय-कर्णिका मंगलाचरण और विषय वर्धमानं स्तुमः सर्वनयनद्यर्णवागमम् । संक्षेपतस्तदुन्नीत – नयभेदानुवादतः ॥१॥ अर्थ सर्वनयरूपी नदियों के लिए जिनका प्रवचन समुद्र के समान गम्भीर है, उनके द्वारा प्ररूपित नय-भेदों को अनुवाद के रूप में दुहराकर हम श्री वर्धमान स्वामी की स्तुति करते हैं। विवेचन मानव-जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष है । इसलिये तीर्थंकरों और जैन-धर्म के महान आचार्यों ने उसकी प्राप्ति के साधनों का तात्त्विक रूप में निर्देश किया है । मोक्ष-प्राप्ति के उन्होंने मुख्यतः तीन साधन बतलाए हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र । जैन-दर्शन के सर्वप्रथम सूत्रकार आचार्य उमास्वाति का सूत्र है"सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" ---तत्त्वार्थसूत्र १-१ For Private And Personal Use Only

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