Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उभयरूप माना हैसामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः । -परीक्षामुख ४।१ अर्थात्-सामान्य-विशेषात्मक पदार्थ ही प्रमाण का विषय है। वस्तु में जाति सामान्य धर्म है और भिन्न-भिन्न व्यक्ति विशेष धर्म हैं। उदाहरण के लिये किसी एक मेले अथवा उत्सव के दृश्य को लीजिए । उत्सव में हजारों मनुष्यों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। उन सब मनुष्यों में 'मनुष्यत्व' एक सामान्य धर्म है, जो जाति रूप है और जिसके बल पर सब मनुष्यों को एक रूप में संकलित कर लिया जाता है कि 'ये सब मनुष्य हैं ।' परन्तु, प्रत्येक मनुष्य अपने व्यक्तिगत गुणों के आधार पर अलग-अलग पहचाना जा सकता है। उन मनुष्यों में कोई पंजाबी है, कोई गुजराती है, कोई बंगाली है और कोई महाराष्ट्रीय है । किसी का कद ऊँचा है, किसी का ठिगना। किसी का वर्ण काला है तो कोई एक दम गौरवर्ण है। वस्तु के सामान्य अंश के द्वारा उस वस्तु की दूसरी वस्तु से समानता रहती है और विशेष अंश के द्वारा अन्य वस्तुओं से उसका भेद बना रहता है। सामान्य धर्म उस For Private And Personal Use Only

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