Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'ही' और 'भी' का अन्तर 'नयवाद' की यह सर्वोपरि विशेषता है कि वह किसी वस्तु के एक पक्ष को पकड़कर यह नहीं कहता कि “यह वस्तु एकान्ततः ऐसी ही है।" वह तो 'ही' के स्थान पर 'भी' का प्रयोग करता है ; जिसका अर्थ यह होता है कि-"इस अपेक्षा से वस्तु का स्वरूप ऐसा 'भी' है।" 'ही' नयाभास है तो 'भी' नयवाद । 'ही विषमता का बीज वपन करती है, तो 'भी' उस वैषम्य के बीज का उन्मूलन करके समता के मधुर वातावरण का सृजन करती है । 'ही' में वस्तु स्वरूप के दूसरे सत्पक्षों का इनकार है, तो 'भी' में इतर सब सत्पक्षों का स्वीकार है । 'ही' से सत्य का द्वार बन्द हो जाता है, तो 'भी' में सत्य का प्रकाश आने के लिए समस्त द्वार अनावृत रहते हैं। जितने भी एकान्तवादी दर्शन हैं, वे वस्तु-स्वरूप के सम्बन्ध में एक नय को सर्वथा प्रधानता देकर ही कुछ प्रतिपादन करते हैं । वस्तु-स्वरूप पर उदारमना होकर विविध दृष्टि-कोणों से विचार करने की कला उनके पास नहीं होती । यही कारण है कि उनका दृष्टिकोण अथवा कथन 'जन-हिताय' न होकर 'जन-विरोधाय' हो जाता है। इसके विपरीत, जैन-दर्शन खुले मस्तिष्क से वस्तु-स्वरूप पर अनेक दृष्टि-बिन्दुओं से विचार करके चौमुखी सत्य को आत्मसात् For Private And Personal Use Only

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