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महावीर स्तुति
२. आप 'तीर्थंकरों में अपश्चिम' हैं - इस अवसर्पिणी काल में इस भरत क्षेत्र में जो चौबीस तीर्थकर हुए हैं, उनमें सबसे अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर हैं। आपके पीछे और कोई तीर्थंकर नहीं हुआ। ऐसे हे भगवन्! आप जयवन्त हैं।
३. आप 'लोगों के गुरु' हैं - तीर्थंकर और सर्वश्रुत के मूल होने से आप सब जीवों के गुरु हैं अर्थात् सभी के उपदेश दाता होने से सभी जीवो के लिए गुरु रूप से पूज्य हैं। ऐसे हे भगवन्! आप जयवन्त हैं।
४. आप 'महात्मा' हैं - आपकी आत्मा अचिन्य अनन्त वीर्य से युक्त है।
५. आप 'महावीर' हैं - विषय कषाय आदि महाशत्रुओं को सर्वथा जीतने वाले हैं अथवा घातिकर्म रूप शत्रुओं को खदेड़ने वाले हैं अथवा मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं।
ऐसे हे भगवन्! आप 'जयवंत' हैं। भई सव्व-जगुजोयगस्स, भदं जिणस्स वीरस्स। भई सुरासुरणमंसियस्स, भदं धुयरयस्स॥३॥
हे महावीर! आप 'सर्व जगत् के उद्योतक' हैं-समस्त लोक-अलोक रूप जगत् को केवलज्ञान - के द्वारा प्रकाशित करने वाले हैं। (इसके द्वारा भगवान् का 'ज्ञान अतिशय' कहा गया)। ऐसे हे
भगवन् ! आपका 'भद्र' हो-भला हो, कल्याण हो। :- आप 'जिन' हैं - इन्द्रिय, विषय, कषाय, परीषह, उपसर्ग, घातिकर्म आदि शत्रुओं को जीतने वाले हैं (इसके द्वारा 'अपायअपगम' अतिशय कहा गया।) ऐसे हे भगवन् ! आपका 'भद्र' हो-भला . हो, कल्याण हो। • आप 'सुर असुर नमस्कृत हैं' - वैमानिक और ज्योतिष्क रूपं देव और भवनपति, व्यन्तर रूप
दानवों के द्वारा पञ्चांग वन्दना से वन्दित हैं। (इससे 'पूज्य अतिशय' कहा गया। पूज्य अतिशय, 'वचन अतिशय' के बिना नहीं होता, अत: यहाँ वचन अतिशय भी समझ लेना चाहिए। इस प्रकार ये चार मूल अतिशय कहे।) ऐसे हे भगवन्! आपका 'भद्र' हो, भला हो, कल्याण हो।
आप 'धूत-रज' हैं-वर्तमान में बन्धने वाले कर्म को 'रज' कहते हैं, आप उस बध्यमान कर्म-रज से भी मुक्त होकर मोक्ष पधार गये हैं। - ऐसे हे भगवन् ! आपका 'भद्र' हो-भला हो, कल्याण हो। (यद्यपि भगवान् सदा ही कल्याणमय हैं तथापि ऐसे कथन से शुभ मन तथा शुभ वचन योग की प्राप्ति होती है, अतएव ऐसे कथन को निर्दोष भक्ति मानी गयी है।
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