Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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देशं महाविषधरस्य तपोवने यः, दुष्टप्रताडनमनार्यभयं च शान्तः । ध्यानेन नो गणितवानभयश्च योगी, वीरं नमामि तमहं भुवि भोगरोगी ॥१९॥ कालाऽब्धि(४३)वर्षपरिधाविह शालमूले, वैशाखशुक्लदशमीयचतुर्थयामे, कैवल्यमाप्तमूजुकीयतटे हि येन, तेन प्रभावितमिदं त्रिशलात्मजेन ॥ २० ॥ योगेन सत्यवचसा यमहिंसया च, ध्यानेन जीवदयया च तितिक्षया च, स्वात्मानमेव कूतवानिह यो हि तीर्थम्, तीर्थङ्करं तमथ जैनविभुं नमामि ॥२१॥ संश्रावकेषु महिलानरसंघदाय, साध्वीति साधुरिति तीर्थविवर्धकाय, तीर्थडुरेषु चरमस्थितिभूषिताय, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय |ો ૨૨ . चित्तेन कर्मविधिना कटुभाषणेन, भागग्रहेण च विदूषणशोषणाभ्याम्, पीडा जनस्य कथिता भुवि येन हिंसा, स्वान्ते स्मरामि जिनवीरमहिंसकं तम् ॥२३॥
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