Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
कियती सम्भावना ?
-मुनिरत्नकीर्तिविजयः।
मुक्तकाव्यम्
मनुष्य एक एव, किन्तु सम्भावनास्तत्राउनेकाः,
प्रथमं तु
स
कुटुम्बरय सभ्यो भूत्वा अवतरति,
पश्चाच्च, शनैःशनैः (स योग्यः स्यान्नाऽपि वा, तथापि)
कौटुम्बिकं तस्य पदं
आयुषा सहैव
सततं वर्धते । पुत्रत्वं अपहाय स पतिर्भवति,
क्रमशश्च जामाता, पिता, श्वसुरः, पितामहः, सर्वं भवति - भवितव्यमेव तेन !
तत्र यदि सोऽभिलषेत् यत्
मया मम समाजस्य, मम ग्रामस्य नगस्य वा सेवा कर्तव्या
तदा
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120