Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 13
________________ प्रासादवासमिह खानल(३०)वर्षदेश्यः, सम्पूर्णयौवनसुखानि विहाय योगी। चक्रे तपो वनगतो हि दिगम्बरो यः, संस्मर्यते स तपसा वनष्टभोगी ॥९॥ सत्यं त्वसङ्ग्रहमहिंसकतां च लोके, कल्याणहेतव इतीदमुपादिशद् यः । सिद्धार्थपुत्रमधुना यमहं स्मरामि, तं वर्धमानमथ साधुवरं नमामि ॥१०॥ अस्तेयमत्र पुनरन्तमनेकतायाः, एकत्वमेव जनजीवनसौख्यहेतोः । यश्चाऽब्रवीदिह सदाचरणं त्वकोपम्, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥११॥ यः कर्मणा च मनसा च हृदा च वाचा जीवस्य पीडनविराम इहेत्यहिंसा । तत्पालकं यमथ शर्म स्मरामि, तं वर्धमानमिह वीरमहं नमामि ॥ १२ ॥ सांसारिकादिसुखसङ्ग्रहमुक्तिचेताः, जीवात्मवान् स भगवानपरिग्रही यः । सेवे हृदि स्वमनसा त्रिशलात्मजं यम्, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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