Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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Kamsadersaw
गलज्जलिका न चन्दनं वने - बने !!
- अभिराजराजेन्द्रमिश्रः ।
सत्यमेव दृश्यते सुभाषिते पुरातने नो मणिगिरौ - गिरौ, न चन्दनं वने - वने ॥१॥
वारिणा समं प्रयाति दुग्धमेकरूपताम् किन्तु तैलमिश्रितं तदेव नैति मित्रताम् सौहृदं विक स्वरं न जीवति प्रवञ्चने नो मणिगिरौ - गिरौ, न चन्दनं वने - वने ॥ २ ॥
धर्म एव रक्षति स्वयं स चेत्सुरक्षितः जायते विसारिणी विभा प्रदीपकुक्षितः अञ्जनं क्च सम्भवेन्महेश्वरे निरञ्जने ? नो मणिगिरौ-गिरौ, न चन्दनं वने - वने ॥३॥
सत्यपालनेन वर्धते सदा मनोबलम् जीवनञ्च जायते निरर्गलं निराकुलम् मङ्गलं व कल्प्यते सति त्रिलोकरावणे ? नो मणिगिरौ - गिरौ, न चन्दनं वने - वने ॥ ४ ॥
अत्ययानपाकरोति सात्त्विकी सहिष्णुता वृद्धिमीयते तया ध्रुवं निसर्गजिष्णुता आर्जवं महीयते न जातु रीतिलचने नो मणिगिरौ - गिरौ, न चन्दनं वने - वने ॥ ५ ॥
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