Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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गलज्जालका तुदन्ति मामलम् !!
- अभिराजराजेन्द्रमिश्रः ह्यो यदीयपादकण्टकाः समुद्धृता मया कण्टकीभवन्त एव ते तुदन्ति मामलम् ॥१॥ यद् गृहं निवारितं प्रदीप्तवह्नितो मया पावकीभवन्त एव ते दहन्ति मामलम् ॥२॥ स्वाशिषा प्रवर्धिताः प्रसह्य ये मया सदा तापसीभवन्त एव ते शपन्ति मामलम् ॥३॥ येऽप्यसीमशंसया मया तुरङ्गमीकूताः रासभीभवन्त एव ते धुवन्ति मामलम् ॥ ४ ॥ यल्ललाटलेखपुष्पिका मयैव कल्पिताः नायकीभवन्त एव ते दिशन्ति मामलम् ॥ ५ ॥ लेखनानि यत्कृतानि शोधितान्यहो मया कोविदीभवन्त एव ते हसन्ति मामलम् ॥६॥ ये प्रचण्डकम्पनेऽपि सुस्थिरा मया कृताः क्षेपकीभवन्त एव ते क्षिपन्ति मामलम् ॥ ७ ॥ कीदृशस्समागतोऽधुना विपर्ययो युगे ? ये सुहृत्तमास्त एव वञ्चयन्ति मामलम् ॥ ८ ॥
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