Book Title: Nandanvan Kalpataru 2001 00 SrNo 06
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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सार्धं द्विजैर्मुनिवरैर्निजधर्मसंघे, शूद्राः समादरयुता विहिता हि येन । तं जातिवर्णसमुदायविरोधिमुख्यम्, वन्दे जिनेन्द्रममरं मुनिवर्धमानम् ॥ २४ ॥ आध्यात्मिकाय जनवर्णविभेदहाय, धर्मार्थशिक्षकवाय च वर्गहाय, ध्यानाय योगनियमादिकपालकाय, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥ २५ ॥ नेत्राऽश्व(७२)संख्यकवया य उदारचित्तः, पावापुरे शरदि कार्तिकमास्यमायाम्, प्राणान् विहाय प्रमेशपदं वाप्नोत्, वीरं नमामि तमहं हि जिनं महान्तम् ॥२६॥ सिद्धो महापुरुष आत्मपरो मुनिर्यः, ज्योतिर्मयश्च प्रमेश्वरमान्ययोगी, निर्वाणलाभमकरोदिह साधुचेताः, सिद्धार्थपुत्रमथ तं हृदि धारयामि ॥२७ ॥ कल्याणदाय जगतीजनसौख्यदाय, विश्वासदाय जनचिन्तनकर्मकाय, तीर्थप्रवर्तकवाय च धार्मिकाय, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥२८ ॥
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